Recent Reviews by Upma Singh
Navbharat Times
Upma Singh is a journalist with 17 years of experience in the field of entertainment and feature journalism. She has worked with Amar Ujala and Dainik Bhaskar , leading national hindi newspapers before joining Navbharat Times. She is an assistant editor at Navbharat Times, Mumbai.
Films reviewed on this Page
Sikandar Ka Muqaddar
All We Imagine as Light
Freedom at Midnight
Do Patti
IC 814 the Kandahar Hijack
Zindaginama
Raat Jawaan Hai
CTRL
Sikandar Ka Muqaddar
सस्पेंस-थ्रिलर के शौकीन हैं तो एक बार यह फिल्म देख सकते हैं।
सिनेमा की दुनिया में हाइस्ट यानी चोरी-डकैती पर बुनी चोर-पुलिस वाली कहानी फिल्मकारों के पसंदीदा विषयों में रही है। इस विषय पर ‘द इटैलियन जॉब’, ‘ओशन सीरीज’, ‘नाऊ यू सी मी’ से लेकर आइकॉनिक ‘मनी हाइस्ट’ जैसी विदेशी फिल्में और वेब सीरीज बन चुकी हैं। देश में भी ‘ज्वेल थीफ’, ‘आंखें’ (2002) और ‘धूम फ्रेंचाइजी’ जैसी यादगार फिल्में बनी हैं। अब इसी विषय पर डायरेक्टर नीरज पांडे अपनी नई फिल्म ‘सिकंदर का मुकद्दर’ लेकर आए हैं। नीरज खुद इससे पहले पुलिस को चकमा देकर रुपये उड़ा लेने वालों की टीम पर फिल्म ‘स्पेशल 26’ बना चुके हैं।
All 9 reviews of Sikandar Ka Muqaddar here
All We Imagine as Light
रंगीनियत से परे वाली स्याह मुंबई के नाम प्रेम गीत
बॉलीवुड की फिल्मों में मुंबई को हमेशा खूब रोमांटिसाइज किया गया है। मसलन, बड़ी-बड़ी इमारतें, बाहें खोले समंदर, चकाचौंध भरी जिंदगी, प्यार का अहसास दिलाती बारिश, लेकिन इस सारी चमक-दमक के बीच यहां बहुत से ऐसे लोग हैं, जो अपने हिस्से की रोशनी के लिए रोज संघर्ष करते हैं। जो यहां की तमाम भीड़ में भी अकेले हैं। ये वो हैं, जो रोज उठते हैं, काम पर जाते हैं और लौटकर आ जाते हैं। इनकी जिंदगी इस भागते शहर में भी ठहरी हुई है। पायल कपाड़िया की कान फिल्म फेस्टिवल में प्रतिष्ठित ‘ग्रां प्री अवॉर्ड’ जीतकर इतिहास रचने वाली फिल्म ‘ऑल वी इमेजिन एज लाइट’ रंगीनियत से परे वाली इसी स्याह मुंबई के नाम प्रेम गीत है।
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Freedom at Midnight
सालों लंबी क्रांति और अनगिनत शहीदों की कुर्बानी के बाद अंग्रेजी हुकूमत से 1947 में मिली आजादी के बदले हिंदुस्तान के दिल पर विभाजन का जो जख्म लगा, वह टीस 77 साल बाद आज भी महसूस होती है। मगर क्या धर्म के नाम पर हुआ देश का यह बंटवारा जरूरी था? क्या यह रुक सकता था? देश के भविष्य से जुड़े इस निर्णायक फैसले में शामिल पंडित नेहरू, महात्मा गांधी, सरदार पटेल या मोहम्मद अली जिन्ना जैसे राजनेताओं का क्या रुख रहा? इतिहास के सबसे त्रासद बंटवारे को लेकर ऐसे ही कई अनछ़ुए पन्ने पलटती है, निखिल अडवानी की वेब सीरीज ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’। यह सीरीज लैरी कॉलिन्स और डॉमनिक लैपियर की इसी नाम से लिखी बहुचर्चित किताब पर आधारित है, जो ब्रिटिश राज का सूरज ढलने के बाद एक स्वतंत्र हिंदुस्तान के बनने के दौरान हुई राजनीति और सामाजिक हालातों की गहराई से पड़ताल करती है।
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Do Patti
यह कहानी है, दो जुड़वा बहनों सौम्या और शैली (कृति सेनन) की
सस्पेंस की चादर में लिपटी यह संवेदनशील विषय वाली फिल्म एक बार जरूर देखी जा सकती है
पति-पत्नी के रिश्ते में जब प्यार की जगह हिंसा ले ले, तो चोट पूरे परिवार और खासकर बच्चों को लगती है। घरेलू हिंसा का यह जख्म कभी-कभी इतना गहरा होता है कि पूरा घर बिखर जाता है। विडंबना देखिए, हिंसा के इतने खतरनाक रूप को ‘घरेलू’ कहा जाता है, जिस कारण घर से बाहर के ज्यादातर लोग पति-पत्नी के इस आपसी मामले में दखल तक नहीं देते। घरेलू हिंसा की इसी कड़वी सच्चाई को दो बहनों की राइवलरी के मसालेदार पैकेजिंग में लपेटकर पेश करती है, एक्ट्रेस कृति सेनन और राइटर कनिका ढिल्लों के बैनर की डेब्यू फिल्म ‘दो पत्ती’।
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IC 814 the Kandahar Hijack
भारतीय इतिहास में 1999 के कंधार प्लेन हाईजैक की घटना आज भी एक काले अध्याय की तरह याद की जाती है। सारी दुनिया जब नई सदी Y2K के आने के उत्साह में मगन थी, क्रिसमस से एक दिन पहले 24 दिसंबर 1999 को करीब 175 लोगों को लेकर काठमांडू से दिल्ली के लिए रवाना हुए इंडियन एयरलाइंस के हवाई जहाज IC 814 को आतंकियों ने हाईजैक कर लिया। हाईजैकर्स के कब्जे वाला यह प्लेन पहले अमृतसर और फिर लाहौर और दुबई होते हुए कंधार में लैंड हुआ। सात दिन बाद भारतीय जेलों में बंद तीन आतंकियों मौलाना मसूद अजहर, मुश्ताक अहमद जरगर और अहमद उमर सईद शेख को छोड़ने के बदले इन यात्रियों की सुरक्षित घर वापसी करवाई गई। अब इसी घटनाक्रम पर आधारित वेब सीरीज ‘IC 814: द कंधार हाईजैक’ से चर्चित निर्देशक अनुभव सिन्हा ने ओटीटी पर दस्तक दी है।
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Zindaginama
मेंटल हेल्थ हमारे समाज में लंबे समय तक एक टैबू रहा है। हालांकि, अब कुछ साल से इसके बारे में खुलकर बातें होने लगी हैं। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (10 अक्टूबर) पर आई एंथॉलजी सीरीज ‘ज़िंदगीनामा’ इसी मेंटल हेल्थ के प्रति जागरूकता की ओर एक मजबूत कदम है। यह सीरीज 35-40 मिनट की छह कहानियों का गुलदस्ता है, जो ईटिंग डिसऑर्डर, गेमिंग एडिक्शन, सिजोफ्रेनिया, ओसीडी, पीटीएसडी, जेंडर डिस्फोरिया जैसी अलग-अलग मानसिक समस्याओं के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करती है।
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Raat Jawaan Hai
आम सी कहावत है कि मां-बाप बनने के बाद आपकी अपनी जिंदगी, अपनी खुशी बेमाने हो जाती है। तब बच्चा, उसकी जरूरतें, उसकी खुशियां ही सबसे ऊपर होती हैं। काफी हद तक होता भी ऐसा ही है, पर पैरंटिंग के नए मायने समझाने वाली वेब सीरीज रात जवान है आपसे कहती है कि नहीं बॉस, एक अच्छा पैरंट बनने के लिए अपनी खुशियों की कुर्बानी देना जरूरी नहीं है। थोड़ी मशक्कत जरूर करनी पड़ेगी, मगर आप अपने करियर, खुशियों, बच्चों सबको साथ लेकर भी चल सकते हैं। खास बात यह है कि ख्याति आनंद पुथरन की लिखी और सुमित व्यास (परमानेंट रूममेट्स, ट्रिपलिंग) निर्देशित यह प्यारी सी फील गुड कहानी ये बड़ी-बड़ी बातें बिना किसी लेक्चरबाजी के मजे-मजे में कह जाती है।
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CTRL
मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया आज हमारी जिंदगी का एक बड़ा और अहम हिस्सा बन चुका है। हममें से कई की जिंदगी तो इसी के इर्द-गिर्द घूमती है। उस पर, अब ज्यादा एडवांस तकनीक AI भी दस्तक दे चुका है, जिसके फायदे-नुकसान को लेकर खूब हलचल मची हुई है। लेकिन क्या इन नई और एडवांस तकनीक का इस्तेमाल हम कर रहे हैं या फिर ये तकनीक ही हमारा इस्तेमाल कर रहे हैं? इन्हें हम कंट्रोल कर रहे हैं या हम खुद इनके कंट्रोल में हैं? इसी चिंताजनक सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करती है, डायरेक्टर विक्रमादित्य मोटवानी की फिल्म CTRL यानी कंट्रोल। सोशल मीडिया या पब्लिक ऐप किस तरह लोगों के प्राइवेट डेटा इकट्ठा करते हैं, उनका गलत इस्तेमाल करते हैं, फिल्म हमें यह बात याद दिलाती है और उसके प्रति सचेत करती है।