 
            Recent Reviews by Upma Singh
Navbharat Times
 
                        Upma Singh is a journalist with 17 years of experience in the field of entertainment and feature journalism. She has worked with Amar Ujala and Dainik Bhaskar , leading national hindi newspapers before joining Navbharat Times. She is an assistant editor at Navbharat Times, Mumbai.
Films reviewed on this Page
                                
                                    
                                    Khakee: The Bengal Chapter
                                
                                    
                                    Kanneda
                                
                                    
                                    Nadaaniyan
                                
                                    
                                    Oops! Ab Kya
                                
                                    
                                    Kaushaljis vs Kaushal
                                
                                    
                                    Black Warrant
                                
                                    
                                    Azaad
                                
                                    
                                    Mismatched S03
                                
                                    
                                    Sikandar Ka Muqaddar
                                
                                    
                                    All We Imagine as Light
                                
                            
Khakee: The Bengal Chapter
 
        
        क्राइम थ्रिलर के शौकीन हैं, तो इसे देख सकते हैं
‘प्रेम कहानी यारों देखी, देवदास की पारो देखी, जर्दा पान का पत्ता देखा, अजब गजब कलकत्ता देखा, किस्सा है गुरदेव का सुर ताल का, एक और रंग भी देखिए बंगाल का’, ये खूबसूरत बोल हैं फिल्ममेकर नीरज पांडे की नई वेब सीरीज ‘खाकी: द बंगाल चैप्टर’ के ओपनिंग ट्रैक के, जो बंगाल का एक अलग रंग दिखाने का दावा करती है। अपनी खाकी फ्रेंचाइजी के तहत बिहार के बाद नीरज पांडे अब इसकी दूसरी कड़ी ‘द बंगाल चैप्टर’ लाए हैं। हालांकि, दावे से उलट कहानी में कोई ऐसा अनूठापन नहीं है। राजनीति, गैंगस्टर और पुलिस के नेक्सस की कहानियां पहले भी कई आ चुकी हैं, लेकिन कोलकाता की गलियों में भागती इस चोर-पुलिस के कहानी में बंगाल की संस्कृति, बोली-बानी और बांग्ला के नामी कलाकारों का समावेश इसे आकर्षक बनाता है। कहानी ‘सिटी ऑफ जॉय’ के ‘सिटी ऑफ भॉय’ बनने की है, जिसे सुधारने का जिम्मा एक ईमानदार और बहादुर खाकीधारी उठाता है। शुरुआत सत्ताधारी पार्टी के एक नेता के पोते की किडनैपिंग से होती है, जिसे खोजने के लिए ईमानदार पुलिस अधिकारी सप्तऋषि सिन्हा (परमव्रत चटर्जी) को एसआईटी में लाया जाता है। सप्तऋषि यहां लोकल डॉन शंकर बरुआ उर्फ बाघा (सास्वत चटर्जी) के आतंक से रूबरू होता है। बाघा अपने दो लड़कों जय-वीरू सागोर तालुकदार (रित्विक भौमिक) और रंजीत ठाकुर (आदिल खान) के साथ मिलकर स्मगलिंग से लेकर दिनदहाड़े किसी का गला रेतने तक, सब कुछ बेखौफ होकर करता है, क्योंकि उसके सिर पर सत्ताधारी पार्टी के ताकतवर नेता बरुन रॉय (प्रोसेनजीत चटर्जी) का हाथ है। चूंकि, इलेक्शन सिर पर है और विपक्ष की नेता निवेदिता बसाक (चित्रांगदा सिंह) शहर के हालात का मुद्दा बनाती है, इसलिए वो सप्तऋषि के जरिए बाघा पर लगाम कसने का दिखावा करते हैं। हालांकि, इस लड़ाई में सप्तऋषि जल्द ही शहीद हो जाते हैं और तब एंट्री होती है, सुपरकॉप अर्जुन मैत्रा (जीत) की। अर्जुन नियमों-निर्देशों को ताख पर रखकर गुनहगारों को सबक सिखाने वाला ऑफिसर है। ऐसे में वह बाघा, सागोर और रंजीत के आतंक से कोलकाता को कैसे भयमुक्त कराता है, यह सीरीज देखकर पता चलेगा।
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Kanneda
 
        
        परमीश वर्मा की बढ़िया परफॉर्मेंस के लिए देख सकते हैं।
‘कन्नेडा’ वेब सीरीज के नरेटर मोहम्मद जीशान अय्यूब के शब्दों में कहें तो इसे समझने के लिए कनाडा देश को समझना होगा, जहां दो देश बसते हैं। एक गोरों की फर्स्ट वर्ल्ड कंट्री ‘कैनेडा’ और दूसरा थर्ड वर्ल्ड कंट्री से आए प्रवासियों का ‘कन्नेडा’, जिसके निवासियों को सेकंड क्लास सिटीजन समझा जाता था। यह कहानी इसी तबके के एक ऐसे बंदे निर्मल चहल उर्फ निम्मा (परमीश वर्मा) की है, जो कनाडा और कन्नेडा के बीच की इस दूरी को मिटाने के लिए कुछ भी करने पर आमादा हो जाता है। साल 1984 के दंगों के बाद अपना पिंड पंजाब छोड़कर वैंकूवर में बसा निम्मा पढ़ाई, खेलकूद, म्यूजिक हर चीज में अव्वल होता है। स्कूल में वह गोरों के खेल रग्बी में सिलेक्ट होने वाला पहला ब्राउन मुंडा बनता है, मगर गोरे साजिशन उसे ड्रग रखने के जुर्म में फंसाकर टीम से निकाल देते हैं। इसके बाद निम्मे को यकीन हो जाता है कि वह कितनी भी मेहनत कर ले, खुद को सुपीरियर समझने वाले कनाडा वासी उसे वह इज्जत नहीं देंगे। इसलिए वह ताकत और पैसा हासिल करके यह इज्जत कमाने का ठान लेता है।
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Nadaaniyan
 
        
        खाली समय में कुछ और करने या देखने के लिए नहीं है, तो फिल्म के नाम पर ऐसी 'नादानियां' देख सकते हैं।
कोई 27 साल पहले करण जौहर अपनी पहली फिल्म ‘कुछ कुछ होता है’ लेकर आए थे, जिसमें हिंदुस्तानी बच्चे पहली बार ऐसे कॉलेज से रूबरू हुए थे, जहां पढ़ाई के नाम पर टीचर और स्टूडेंट दोनों माइक्रो मिनी स्कर्ट पहनकर ‘प्यार क्या है?’ इस पर गहन विमर्श करते हैं। तब सब यही जानना चाहते थे कि भईया, ये कॉलेज देश में है कहां! क्योंकि हमारे स्कूल में तो प्रेम गीत गाने तक पर टीचर मुर्गा बना देते हैं। खैर, वही करण जौहर अब एक ऐसे अद्भुत स्कूल की कहानी लेकर आए हैं, जहां स्टूडेंट डिबेट टीम के कैप्टन का चुनाव उसकी तर्क क्षमता की बजाय एब्स देखकर बनया जाता है। फिल्म का नाम है- नादानियां, जिसे देखकर यही लगता है कि ऐसी नादानियां मेकर्स को सूझती कैसे है!
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Oops! Ab Kya
 
        
        अच्छे अभिनय से सजी हल्की-फुल्की मजेदार कहानी
सोचिए, एक लड़की जिसने आज के जमाने में शादी से पहले कभी इंटीमेट नहीं होने की कसम ली हो, जिसका बॉयफ्रेंड तीन साल से उस खास दिन का इंतजार कर रहा हो, उसे अचानक पता चले कि वो प्रेग्नेंट है। है ना विचित्र परिस्थिति! पर इसी अजीबो-गरीब सिचुएशन को काफी मजेदार तरीके से हैंडल करती है वेब सीरीज ‘ऊप्स! अब क्या?’, जो मशहूर अमेरिकन टीवी शो ‘जेन द वर्जिन’ का आधिकारिक रीमेक है। इस वेब सीरीज में ड्रामा है, कॉमिडी है, इमोशन है, और तो और मर्डर मिस्ट्री जैसे भरपूर मसाले हैं, जो कभी-कभी अतिरेक भरे लगने के बावजूद आपको बांधे रखते हैं। यह कहानी है रूही (श्वेता बसु प्रसाद) की, जिसने अपनी नानी को वचन दिया है कि वह शादी से पहले कभी फिजिकल रिलेशन नहीं बनाएगी। उसका ओमकार (अभय महाजन) जैसा ग्रीन फ्लैग ब्वॉयफ्रेंड है, जो तीन साल से अपने अरमानों को दबाकर रूही के इस वचन में उसका साथ दे रहा है। लेकिन तभी एक दिन पता चलता है कि रूही प्रेग्नेंट है।
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Kaushaljis vs Kaushal
 
        
        दो पीढ़ियों के बीच आने वाली खाई को भरने और वाई फाई का कनेक्शन
हमारे आम मध्यमवर्गीय परिवारों के ज्यादातर माता-पिता बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए अपने सपनों को कुर्बान कर देते हैं। लेकिन वही बच्चे बड़े होकर अपनी ही दुनिया में रम जाते हैं। मां-बाप के लिए उनके पास वक्त ही नहीं बचता और फिर, इन बेचारे बुजुर्गों के पास बचती है टूटे हुए सपनों की किरचें, अकेलापन और उससे उपजी झुंझलाहट। आज के दौर की इसी घर-घर की कहानी का भावुक चित्रण है, फिल्म कौशलजीज वर्सेज कौशल। ये कहानी कन्नौज के कौशल परिवार की है, जिसके मुखिया साहिल कौशल (आशुतोष राणा) कव्वाल बनने के सपने को कुर्बान कर अकाउंटेंट बन जाते हैं, ताकि बच्चों की पढ़ाई का खर्च सही से उठा सकें। वहीं, उनकी पत्नी संगीता (शीबा चड्ढा) ने बच्चों को पूरा समय देने के लिए अपने इत्र बनाने की चाहत दबा दी। पर नोएडा में एक ऐड एजेंसी में नौकरी करने वाले बेटे युग (पवैल गुलाटी) के पास घर आना तो दूर, मां-बाप से बात करने का भी वक्त नहीं रहता। बेटी भी बाहर एनजीओ में काम करती है। ऐसे में, घर में अकेले बचे साहिल और सीमा अपने-अपने सपनों को दोबारा जीने की कोशिश तो करते हैं, मगर एक-दूसरे के मन की बात नहीं समझ पाते। हर वक्त एक-दूसरे से लड़ते रहते हैं, लिहाजा एक दिन इस कलेश को खत्म करने के लिए दोनों तलाक लेने का फैसला लेते हैं। इधर, युग की गर्लफ्रेंड कियारा (ईशा तलवार) को ऐसा घर चाहिए, जहां सब हंसी-खुशी रहते हों। ऐसे में, मां-बाप के अलग होने के फैसले का बच्चों पर क्या असर पड़ता है? यह फिल्म देखकर पता चलेगा।
Black Warrant
 
        
        जेल की अनदेखी दुनिया की सच्ची बानगी और बेहतरीन परफॉर्मेँसेज के लिए देखनी चाहिए।
जेल एक ऐसी जगह है, जिससे हर कोई दूर ही रहना चाहेगा। यही वजह है कि जेल की भीतर की दुनिया के बारे में लोगों को कम ही जानकारी रहती है। हां, कई फिल्मों में जेल में होने वाली दबंगई, खराब खाना, बारिश में सोने की भी जगह ना मिलने जैसी चीजें जरूर देखने को मिली है, लेकिन विक्रमादित्य मोटवाने की नई वेब सीरीज ब्लैक वारंट जेल की दुनिया की स्याह सचाई को इतनी गहराई से दिखाती है कि आप इसमें खोते जाते हैं। एशिया की सबसे बड़ी तिहाड़ के जेलर सुनील कुमार गुप्ता और पत्रकार सुनेत्र चौधरी की इसी शीर्षक से लिखी किताब पर आधारित यह सीरीज जेल के भीतर होने वाले भ्रष्टाचार, जेलर-कैदी के रिश्तों, उनकी जिंदगी के साथ-साथ अस्सी के दशक में फांसी पर चढ़े चर्चित कैदियों की कहानी भी दिखाती है।
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Azaad
 
        
        इंसान और पशु प्रेम की बानगी देती यह फिल्म अमन देवगन के लिए देखी जा सकती है।
बॉलीवुड में इंसान और जानवरों के प्यार, दोस्ती और वफादारी पर ‘हाथी मेरे साथी’ और ‘तेरी मेहरबानियां’ जैसी यादगार फिल्में बनी हैं। हालांकि, वक्त के साथ इन बेजुबानों के साथ इंसानी रिश्तों की कहानियां कम होती गईं, पर अब डायरेक्टर अभिषेक कपूर इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए फिल्म ‘आजाद’ लेकर आए हैं, जिसका केंद्र एक घोड़ा है। अपनी फिल्मों से फरहान अख्तर, सुशांत सिंह राजपूत और सारा अली खान को बॉलीवुड में लॉन्च करने वाले अभिषेक कपूर इस फिल्म से भी दो नए चेहरों, अजय देवगन के भांजे अमन देवगन और रवीना टंडन की बेटी राशा थडानी को पर्दे पर उतार रहे हैं। फिल्म में इन दोनों नए एक्टर्स, खासकर अमन ने आत्मविश्वास भरी अदाकारी से खुद को लंबी रेस का घोड़ा साबित करने की बढ़िया कोशिश की है।
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Mismatched S03
 
        
        किरदारों का ग्राफ आगे बढ़ाने में भी कंजूसी बरती गई है
एक टेक्नॉलजी को जी-जान से चाहने वाली अंबाला की मिडल क्लास लड़की डिंपल आहूजा (प्राजक्ता कोली) और एक टूटकर प्यार करने वाला जयपुर के रजवाड़े घराने का सच्चा आशिक ऋषि सिंह शेखावत (रोहित सराफ), यानी एक बिल्कुल ही मिसमैच्ड जोड़ी और जब ये दोनों मिलते हैं, तो क्या होता है यही कहानी है वेब सीरीज ‘मिसमैच्ड’ की। लेखिका संध्या मेनन की किताब ह्वेन डिंपल मेट ऋषि पर आधारित इस सीरीज के दो सीजन पहले ही आ चुके हैं और युवा दर्शकों के बीच डिंपल और ऋषि यानी प्राजक्ता कोली और रोहित सराफ की जोड़ी पहले ही काफी पसंद की जा चुकी है। उनकी केमिस्ट्री तीसरे सीजन में भी सुहाती है, मगर कहानी के मामले में सीरीज बेहद कमजोर और सतही साबित होती है।
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Sikandar Ka Muqaddar
 
        
        सस्पेंस-थ्रिलर के शौकीन हैं तो एक बार यह फिल्म देख सकते हैं।
सिनेमा की दुनिया में हाइस्ट यानी चोरी-डकैती पर बुनी चोर-पुलिस वाली कहानी फिल्मकारों के पसंदीदा विषयों में रही है। इस विषय पर ‘द इटैलियन जॉब’, ‘ओशन सीरीज’, ‘नाऊ यू सी मी’ से लेकर आइकॉनिक ‘मनी हाइस्ट’ जैसी विदेशी फिल्में और वेब सीरीज बन चुकी हैं। देश में भी ‘ज्वेल थीफ’, ‘आंखें’ (2002) और ‘धूम फ्रेंचाइजी’ जैसी यादगार फिल्में बनी हैं। अब इसी विषय पर डायरेक्टर नीरज पांडे अपनी नई फिल्म ‘सिकंदर का मुकद्दर’ लेकर आए हैं। नीरज खुद इससे पहले पुलिस को चकमा देकर रुपये उड़ा लेने वालों की टीम पर फिल्म ‘स्पेशल 26’ बना चुके हैं।
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All We Imagine as Light
 
        
        रंगीनियत से परे वाली स्याह मुंबई के नाम प्रेम गीत
बॉलीवुड की फिल्मों में मुंबई को हमेशा खूब रोमांटिसाइज किया गया है। मसलन, बड़ी-बड़ी इमारतें, बाहें खोले समंदर, चकाचौंध भरी जिंदगी, प्यार का अहसास दिलाती बारिश, लेकिन इस सारी चमक-दमक के बीच यहां बहुत से ऐसे लोग हैं, जो अपने हिस्से की रोशनी के लिए रोज संघर्ष करते हैं। जो यहां की तमाम भीड़ में भी अकेले हैं। ये वो हैं, जो रोज उठते हैं, काम पर जाते हैं और लौटकर आ जाते हैं। इनकी जिंदगी इस भागते शहर में भी ठहरी हुई है। पायल कपाड़िया की कान फिल्म फेस्टिवल में प्रतिष्ठित ‘ग्रां प्री अवॉर्ड’ जीतकर इतिहास रचने वाली फिल्म ‘ऑल वी इमेजिन एज लाइट’ रंगीनियत से परे वाली इसी स्याह मुंबई के नाम प्रेम गीत है।